उत्तराखंड की पंचायतों में संवैधानिक संकट, ओबीसी आरक्षण पर बनेगी रणनीति, 7 जून को मंत्रिमंडलीय उप समिति की पहली बैठक…

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हरिद्वार को छोड़कर उत्तराखंड के 12 जिलों की पंचायतों में प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद राज्य में संवैधानिक संकट की स्थिति बन गई है। इस संकट से निपटने के लिए राज्य सरकार ने तीन सदस्यीय मंत्रिमंडलीय उप समिति का गठन किया है।

कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल की अध्यक्षता में बनी इस समिति में रेखा आर्य और सौरभ बहुगुणा को सदस्य नामित किया गया है। यह समिति पंचायती राज अधिनियम में संशोधन से जुड़े अध्यादेश को नए सिरे से तैयार करेगी ताकि उसे पुनः राजभवन भेजा जा सके..

7 जून को समिति की पहली बैठक आयोजित की जाएगी, जिसमें वर्मा आयोग की तीसरी रिपोर्ट को सामने रखकर पंचायतों में ओबीसी आरक्षण को लेकर नियमावली का परीक्षण किया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि 4 जून को हुई कैबिनेट बैठक में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर अनौपचारिक चर्चा की गई थी। इसके बाद 5 जून को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ओबीसी आरक्षण निर्धारण पर विचार के लिए मंत्रिमंडलीय उप समिति का गठन किया।

वर्तमान में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव केवल तभी संभव होंगे, जब ओबीसी आरक्षण की नियमावली को मंजूरी मिल जाए। वर्मा आयोग की सिफारिशों के आधार पर पूर्व में निकाय चुनाव कराए जा चुके हैं। अब सरकार पंचायत चुनाव के लिए भी इसी रिपोर्ट के आधार पर रास्ता निकालना चाहती है।

हालांकि मानसून सत्र में चुनाव कराना सरकार के लिए बड़ी चुनौती हो सकती है। इधर, पंचायतों में प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है—28 मई को ग्राम पंचायत, 30 मई को क्षेत्र पंचायत और 1 जून को जिला पंचायतों में कार्यकाल खत्म हुआ।

इस स्थिति से निपटने के लिए पंचायती राज अधिनियम में संशोधन अध्यादेश लाया गया था, लेकिन राजभवन ने उसे वापस विधायी विभाग को भेज दिया। ऐसे में सरकार के सामने अब संशोधित अध्यादेश तैयार कर, जल्दबाज़ी में संवैधानिक रास्ता निकालने की चुनौती है।

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