ऊधमसिंहनगर: ग्रीष्मकालीन धान पर प्रतिबंध के मुद्दे पर किसानों की बढ़ती नाराजगी के बीच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस साल धान की खेती की अनुमति देने की घोषणा की। इस फैसले का किसानों ने जोरदार स्वागत किया है। यह मुद्दा सड़क से विधानसभा तक गूंजा, और कांग्रेस व किसान संगठनों ने बड़े आंदोलन की तैयारी भी कर ली थी।
क्यों लगाया गया था प्रतिबंध?
तराई क्षेत्र में गिरते भूजल स्तर को देखते हुए जिला प्रशासन ने ग्रीष्मकालीन धान की खेती पर रोक लगा दी थी। प्रशासन और कृषि विभाग किसानों को मक्का और अन्य वैकल्पिक फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे। लेकिन किसानों ने इस फैसले का पुरजोर विरोध किया और धान की खेती पर छूट की मांग को लेकर प्रदर्शन शुरू कर दिए।
राजनीतिक घमासान और विरोध प्रदर्शन
किच्छा विधायक तिलकराज बेहड़ ने इस फैसले को किसान विरोधी करार दिया और डीएम कार्यालय के बाहर अनिश्चितकालीन धरने की घोषणा कर दी।
गदरपुर विधायक अरविंद पांडेय ने विधानसभा में मुद्दा उठाते हुए कहा कि अचानक धान पर रोक लगाने से किसानों की आय पर गहरा असर पड़ेगा, प्रशासन ने गदरपुर और बाजपुर में धान की नर्सरी को नष्ट कर दिया और धान लगाने पर कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी, जिससे किसानों में रोष बढ़ गया।
मुख्यमंत्री धामी के फैसले से किसानों को राहत
किसानों के बढ़ते विरोध और राजनीतिक दबाव के बीच मुख्यमंत्री धामी ने इस साल धान की खेती की अनुमति देने का बड़ा फैसला लिया। किसान संगठनों ने इसे अपनी संघर्ष की जीत बताया है।
तिलकराज बेहड़, विधायक, किच्छा:
“मुख्यमंत्री को इस फैसले के लिए बधाई, यह किसानों के संघर्ष की जीत है। प्रशासन द्वारा नष्ट की गई धान की पौध की भरपाई सरकार को करनी चाहिए।”
अरविंद पांडेय, विधायक, गदरपुर:
“भूजल संरक्षण के लिए धान पर रोक जरूरी है, लेकिन इसे लागू करने से पहले किसानों को समय दिया जाना चाहिए। भविष्य में सही समय पर प्रचार-प्रसार जरूरी है।”
क्या रहेगी आगे की नीति?
भविष्य में ग्रीष्मकालीन धान पर स्थायी प्रतिबंध लगाने को लेकर सरकार लंबी रणनीति बना सकती है, ताकि जल संकट को टाला जा सके। लेकिन फिलहाल, इस साल धान की खेती की छूट मिल गई है, जिससे किसानों को राहत जरूर मिली है।