*Big News” SC पैनल की राष्ट्रपति से सिफारिश, बंगाल में लगे राष्ट्रपति शासन; पढ़िए क्या है पूरा मामला…*

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पश्चिम बंगाल में नॉर्थ 24 परगना जिला स्थित संदेशखाली यौन उत्पीड़न का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. बात अब राज्य में राष्ट्रपति शासन लगवाने तक भी पहुंच गई है. दरअसल एससी पैनल ने पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की है. इसके लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पैनल ने एक रिपोर्ट सौंपी है. पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि राज्य में कानून-व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है. पैनल का यह भी कहना है कि आरोपियों पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कानून के तहत मुकदमा चलाया जाना चाहिए।

इससे पहले संदेशखाली में महिलाओं पर अत्याचार के मामले में वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी. उन्होंने मांग की कि जांच और उसके बाद के परीक्षण को पश्चिम बंगाल के बाहर किसी राज्य में स्थानांतरित किया जाए. सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई या एसआईटी से स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच कराई जाए. याचिका में पीड़ितों को मुआवजा देने का भी आग्रह किया है।

भाजपा-कांग्रेस को संदेशखाली जाने से रोका गया

कल भाजपा डेलिगेशन ने संदेशखाली जाने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक दिया था. हिंसा को लेकर बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 6 सदस्यीय टीम बनाई थी. जांट टीम को हिंसा प्रभावित इलाके का दौरान करना था, लेकिन संदेशखाली जा रही बीजेपी की टीम को पुलिस ने जाने से रोक दिया. रोके जाने के बाद बीजेपी की टीम के नेता धरने पर बैठ गए. बीजेपी नेताओं ने कहा कि हम शांतिपूर्ण तरीके से पीड़िता से मिलने जा रहे थे. लेकिन हमें मिलने नहीं जाने दिया जा रहा है, ये अन्याय है. उसके बाद कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने भी कोशिश की लेकिन पुलिस ने उन्हें भी जाने से रोक दिया है. इस पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच झड़प हुई।

संदेशखाली में हुआ क्या था?

संदेशखाली लगातार दो महीने से सुर्खियों में है. संदेशखाली में टीएमसी नेता शाहजहां शेख के घर पर रेड मारने गए ईडी अधिकारियों पर हमले किए गए थे. उस हमले में ईडी के अधिकारी घायल हो गए थे. उसके लगभग डेढ़ महीने के बाद संदेशखाली की महिलाओं ने शाहजहां शेख और उनके समर्थकों के खिलाफ प्रदर्शन किया और उनके घरों में आग लगा दी. इस बीच एक वीडियो सामने आया था जिसमें एक महिला को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि कई गृहिणियों को हफ्तों या महीनों तक टीएमसी कार्यकर्ताओं और नेताओं के घरों में रहने के लिए मजबूर किया गया था. महिलाओं ने यौन उत्पीड़न और आदिवासी भूमि पर जबरन कब्जा करने के आरोप लगाया था।

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