फिरोजपुर। फर्जी दस्तावेज़ों के जरिए ज़मीन हड़पने के मामलों में देश पहले भी शर्मिंदा होता रहा है, लेकिन पंजाब के फिरोजपुर से सामने आया एक मामला हैरान कर देने वाला है। यहां मां-बेटे की एक जोड़ी ने कथित तौर पर भारतीय वायुसेना की रनवे वाली जमीन ही बेच दी। करीब 28 साल बाद पुलिस ने दोनों आरोपियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया है।
यह मामला गांव फत्तू वाला का है, जहां 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने एडवांस लैंडिंग ग्राउंड (ALG) के लिए यह जमीन अधिग्रहित की थी। आज़ादी के बाद यह जमीन भारतीय वायुसेना के नियंत्रण में आ गई। लेकिन गांव डुमनी वाला निवासी ऊषा अंसल और उनके बेटे नवीन चंद अंसल ने कथित रूप से फर्जी दस्तावेज़ तैयार कर इस जमीन को निजी लोगों को बेच डाला।
कानूनगो की शिकायत से खुला मामला
इस घोटाले का पर्दाफाश रिटायर्ड कानूनगो निशान सिंह ने किया। उनकी शिकायत पर विजिलेंस ब्यूरो की इंस्पेक्टर जगनदीप कौर ने जांच कर रिपोर्ट एसएसपी को सौंपी। इसके आधार पर कुलगढ़ी थाने में 28 जून 2025 को FIR संख्या 91 दर्ज की गई। आरोपियों पर IPC की धारा 419, 420, 465, 467, 471 और 120-B के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है।
अधिकारियों की मिलीभगत का आरोप
एसपीडी मंजीत सिंह ने बताया कि आरोपियों ने कुछ निचले स्तर के राजस्व अधिकारियों से मिलीभगत कर वायुसेना की जमीन को निजी लोगों के नाम बेच दिया। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने इसकी निगरानी खुद की और विजिलेंस ब्यूरो को जांच सौंपी गई।
हाईकोर्ट के निर्देश पर दर्ज हुई FIR
हाईकोर्ट की सख्ती के बाद 20 जून 2025 को रिपोर्ट दाखिल की गई और उसके बाद FIR दर्ज हुई। जांच में पाया गया कि जमीन 1945 से सेना के कब्जे में थी, लेकिन आरोपियों ने धोखाधड़ी करके उसका रकबा तैयार कर लिया और 1997 में इसे बेच दिया।
लंबे समय तक दबा रहा मामला
शिकायतकर्ता निशान सिंह ने बताया कि असली मालिक मदन मोहन लाल की 1991 में मौत हो गई थी। 1997 में हुए सौदे में कई नाम जुड़े थे, लेकिन सेना ने कभी जमीन इन लोगों को हस्तांतरित नहीं की थी। हलवारा एयरफोर्स स्टेशन ने भी जांच की मांग की थी, लेकिन वर्षों तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी
देरी पर नाराज हाईकोर्ट ने 2023 में फिरोजपुर डीसी को जांच पूरी करने के निर्देश दिए। डीसी ने जवाब में बताया कि 1958-59 के रिकॉर्ड के अनुसार जमीन सेना के कब्जे में है। लेकिन निशान सिंह संतुष्ट नहीं हुए और फिर से याचिका दायर की। उनका आरोप है कि जमीन 2001 में कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से निजी लोगों को हस्तांतरित कर दी गई।
जमीन का हिस्सा सेना को लौटाया
जिला प्रशासन ने मई 2025 में जांच के बाद कथित रूप से निजी व्यक्तियों को दी गई जमीन का हिस्सा रक्षा मंत्रालय को वापस सौंप दिया।
“यह ज़मीन 1937-47 से पहले की है। असली मालिक दिल्ली चला गया था। इसके बाद अफसरों ने फर्जी रकबा तैयार कर इसे बेच दिया। पटवारी से लेकर एसडीएम तक सभी ने यह मामला दबाए रखा। हाईकोर्ट के हस्तक्षेप से अब सच सामने आया।”
— निशान सिंह, पूर्व कानूनगो
यह मामला एक बार फिर यह साबित करता है कि फर्जीवाड़ा अगर सिस्टम की मिलीभगत से हो, तो देश की सुरक्षा तक दांव पर लग सकती है। अब निगाहें इस पर हैं कि प्रशासन और न्यायालय इस घोटाले में शामिल अन्य जिम्मेदारों पर क्या कार्रवाई करते हैं।