चंपावत। उत्तराखंड के पंचायत चुनावों में इस बार एक ऐसा मामला सामने आया है, जो ईमानदारी और प्रशासनिक लापरवाही दोनों का उदाहरण बन गया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के विधानसभा क्षेत्र चंपावत की ग्राम पंचायत तरकुली में ग्राम प्रधान पद के लिए हारी हुई प्रत्याशी काजल बिष्ट को गलती से जीत का प्रमाण पत्र सौंप दिया गया।
हैरानी की बात यह रही कि काजल बिष्ट ने खुद निर्वाचन अधिकारियों को इस गलती की जानकारी दी और कहा कि असली विजेता सुमित कुमार को प्रमाण पत्र दिया जाना चाहिए, क्योंकि उन्हें 103 की तुलना में 106 वोट मिले हैं।
“मैं हारी हूं, मुझे जीत का प्रमाण पत्र क्यों?”
जैसे ही काजल बिष्ट को विजेता घोषित किया गया, उन्होंने ईमानदारी का परिचय देते हुए साफ कहा –
> “मुझे अपने प्रतिद्वंद्वी से कम वोट मिले हैं। मैं चुनाव हार गई हूं, ऐसे में मुझे यह प्रमाण पत्र नहीं चाहिए। इसे सुमित कुमार को दिया जाना चाहिए।”
इस मामले ने एक ओर जहां काजल बिष्ट की ईमानदारी को लेकर सराहना बटोरी, वहीं निर्वाचन व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
एसडीएम ने दिए पुनर्मतगणना के आदेश
काजल बिष्ट की आपत्ति के बाद मामला एसडीएम अनुराग आर्य तक पहुंचा। उन्होंने तत्काल संज्ञान लेते हुए चुनाव अधिकारी को 30 दिनों के भीतर पुनर्मतगणना के आदेश दिए। अधिकारियों ने आश्वस्त किया है कि जल्द ही पुनर्मतगणना की तिथि तय की जाएगी।
चुनाव में पहले से ही रही विवादों की छाया
बता दें कि उत्तराखंड के 12 जिलों (हरिद्वार को छोड़कर) में दो चरणों में पंचायत चुनाव 24 और 28 जुलाई को हुए थे और परिणाम 31 जुलाई को जारी किए गए।
इन चुनावों में पहले प्रशासक नियुक्ति, फिर आरक्षण विवाद, हाईकोर्ट की सुनवाई, और डबल वोटर लिस्ट जैसी कई समस्याएं सामने आईं।
अब चंपावत का यह मामला निर्वाचन अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर एक और सवालिया निशान बनकर उभरा है।
जहां सत्ता की दौड़ में लोग हर हथकंडा अपनाते हैं, वहीं काजल बिष्ट की ईमानदारी पंचायत चुनावों की गरिमा को नया आयाम दे गई। अब सवाल ये है – क्या प्रशासन भी उतनी ही ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभा पाएगा?