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देश भर में दशहरे के त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। लगभग पूरे उत्तर भारत में दशहरे में रामलीला के मंचन के साथ-साथ रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण का पुतला जलाया जाता है। लेकिन, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा के एक गांव में बिल्कुल विपरीत तस्वीर देखने को मिलती है।

दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा के बिसरख गांव की अगर हम बात करें तो यहां दशहरा में रावण दहन नहीं होता है। इस गांव की परंपरा बिल्कुल ही अलग है, यहां रामलीला का आयोजन भी नहीं होता है। कहा जाता है कि वर्षों से इस गांव में चली आ रही परंपरा का अगर कोई उल्लंघन करता है, तो उसका सर्वनाश हो जाता है।

बिसरख गांव के लोगों का मानना है कि यह रावण की जन्मस्थली है। यदि यहां रावण का पुतला जलाया जाता है तो रावण बाबा के साथ अन्याय होगा। गांव के लोग एक पुराने किस्से का जिक्र करते हुए कहते हैं कि एक व्यक्ति ने रावण का पुतला जलाने की कोशिश की थी, जिसके बाद उसका सर्वनाश हो गया था। उसका घर खंडहर में तब्दील हो चुका है।

बिसरख गांव में रावण का एक मंदिर भी है। इस मंदिर में रावण के पिता ऋषि विश्वश्रवा द्वारा स्थापित अष्टकोणीय शिवलिंग मौजूद है। मंदिर के महंत की मानें तो रावण और उनके भाई कुबेर इस शिवलिंग की पूजा करते थे। महंत आगे बताते हैं कि रावण ने भगवान शिव की तपस्या करते हुए इसी शिवलिंग पर अपने सिर को अर्पित किए थे, जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें 10 सिर का वरदान दिया था।

गांव के अन्य लोग बताते हैं कि दूर-दूर से लोग भगवान शिव और बाबा रावण से वरदान मांगने के लिए यहां आते हैं। एक अन्य ग्रामीण ने बताया कि इस मंदिर का अष्टकोणीय शिवलिंग अनूठा है। उन्होंने भी इस मंदिर में मन्नत मांगी थी, जो पूरी हो गई।

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