
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें उत्तर प्रदेश के सरकारी अधिकारियों को सिर्फ सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने का निर्देश दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह निर्देश नीतिगत फैसलों में हस्तक्षेप करता है और लोगों की व्यक्तिगत पसंद को सीमित करता है।





मामला 2018 का है, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकारी अस्पतालों की स्थिति सुधारने के लिए कई निर्देश जारी किए थे। इन्हीं में एक आदेश यह भी था कि उत्तर प्रदेश के सरकारी अधिकारियों को सिर्फ सरकारी अस्पतालों में ही इलाज कराना होगा। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को खारिज कर दिया है।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि अस्पतालों की स्थिति में सुधार करना जरूरी है, लेकिन किसी को यह बाध्य नहीं किया जा सकता कि वह कहां इलाज कराए। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे निर्देश मरीजों की स्वतंत्रता और चिकित्सा सुविधा की उपलब्धता को प्रभावित कर सकते हैं।
सीजेआई संजीव खन्ना ने कहा, “आप यह नहीं कह सकते कि किसी को सिर्फ सरकारी अस्पताल में ही इलाज कराना होगा। अस्पतालों की स्थिति सुधारना ज़रूरी है, लेकिन किसी की पसंद पर रोक नहीं लगाई जा सकती।”
2018 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया था। याचिकाकर्ता ने सरकारी अस्पताल में प्रसव के दौरान हुई लापरवाही का मामला उठाया था, जिसके बाद कोर्ट ने चिकित्सा व्यवस्था में सुधार के लिए कई निर्देश दिए थे।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकारी अस्पतालों में मेडिकल स्टाफ की भर्ती और सुविधाओं में सुधार का इरादा सराहनीय है, लेकिन किसी पर इलाज को लेकर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता।
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से सरकारी अधिकारियों को राहत मिली है, लेकिन सरकारी अस्पतालों की हालत सुधारने की चुनौती अब भी बनी हुई है।