
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि बेटी को अपनी शिक्षा जारी रखने का मौलिक अधिकार है। कोर्ट ने एक दंपती के विवाद में सुनवाई करते हुए यह स्पष्ट किया कि बेटी को अपनी पढ़ाई के लिए माता-पिता से खर्च वसूलने का पूरा कानूनी अधिकार है।





26 साल से अलग रह रहे दंपती का मामला
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने यह फैसला सुनाया। मामले में 26 साल से अलग रह रहे दंपती की बेटी ने अपनी शिक्षा के लिए माता-पिता से सहायता की मांग की थी। बेंच ने कहा कि माता-पिता अपनी वित्तीय सीमा के भीतर बेटी की शिक्षा के लिए जरूरी धनराशि उपलब्ध कराने के लिए बाध्य हैं।
43 लाख रुपये की शिक्षा खर्च का विवाद
मामले में आयरलैंड में पढ़ रही बेटी ने अपने पिता द्वारा दिए गए 43 लाख रुपये स्वीकार करने से इनकार कर दिया। उसने कहा कि वह अपनी गरिमा बनाए रखने के लिए इस राशि को वापस करना चाहती है, लेकिन कोर्ट ने कहा कि यह उसकी पढ़ाई के लिए दी गई राशि है, जिसे वह अपने पास रखने की हकदार है।
आपसी सहमति से तलाक का आदेश
मामले के समाधान के तहत, सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से दंपती के तलाक का आदेश दिया। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 का हवाला देते हुए कहा कि अब दोनों पक्ष भविष्य में एक-दूसरे के खिलाफ कोई दावा नहीं कर सकते।
इस फैसले ने बेटी के शिक्षा अधिकार को और मजबूती दी है, साथ ही यह भी सुनिश्चित किया है कि माता-पिता, भले ही वे अलग क्यों न हों, अपने बच्चों की शिक्षा का खर्च उठाने के लिए जिम्मेदार हैं।