*”किसी समुदाय के हित पूरा करने के लिए नहीं है पुलिस…”, जानिए किस मामले में HighCourt ने की सख्त टिप्पणी….*

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दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि पुलिस किसी खास धार्मिक या सांस्कृतिक समुदाय के हितों की पूर्ति के लिए तैयार नहीं की गई है। कोर्ट ने कहा कि जांच में गुमनामी के लिए कोई जगह नहीं हो सकती। इन टिप्पणियों के साथ हाई कोर्ट ने कानून लागू करने वाली एजेंसियों को ‘पर्दानशीन’ महिलाओं की जरूरतों के प्रति अधिक संवेदनशीलता दिखाने के लिए निर्देश देने से इनकार कर दिया है। जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि जांच एजेंसी को निष्पक्षता, स्पष्टता और तर्कसंगत के सिद्धांतों का पालन करना होगा। उन्हें एक विशेष तरीके से काम करने का निर्देश देना जो समाज के हित के खिलाफ हो सकता है, अन्यायपूर्ण होगा और दुरुपयोग की गुंजाइश छोड़ सकता है।

कोर्ट ने कहा कि कानून प्रवर्तन एजेंसियां और उनकी जांच धार्मिक प्रथाओं से संचालित नहीं हो सकती, बल्कि समुदाय और सुरक्षा से प्रेरित होनी चाहिए। कोर्ट का आदेश एक ‘पर्दानशीन’ मुस्लिम महिला की याचिका पर आया, जिसने दिल्ली पुलिस को उन महिलाओं द्वारा मानी जाने वाले पवित्र धार्मिक, सामाजिक रीति-रिवाजों और प्रथाओं के बारे में जागरूक करने के लिए निर्देश देने की मांग की थी, जो ‘पर्दा’ को या तो धार्मिक विश्वास के रूप में या व्यक्तिगत पसंद के रूप में मानती हैं।

हाई कोर्ट ने कहा कि धर्म की स्वतंत्रता के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत निहित मौलिक अधिकारों को आरोपी के लिंग की परवाह किए बिना, देश और समुदाय की सुरक्षा के पक्ष में समर्पित किया गया है। आधुनिक युग में पर्दानशीन महिलाओं की अवधारणा ‘कम प्रासंगिक’ है। खासकर बड़े शहरों में। कोर्ट ने पर्दा करने वाली महिलाओं को ऐसी महिलाएं कहकर संबोधित किया जो अपनी मान्यताओं और विश्वास के अनुसार एक विशेष ड्रेस कोड का पालन करती हैं। कोर्ट ने कहा कि ‘पर्दानशीं’ का इस्तेमाल अतीत में उन महिलाओं के संदर्भ में किया जाता था, जो न तो सशक्त थीं और न ही उन्हें सांसारिक मामलों से अच्छी तरह परिचित माना जाता था।

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