RSS के कार्यक्रमों में सरकारी कर्मचारी के शामिल होने पर लगे प्रतिबंध को केंद्र सरकार की ओर से हटाया गया है. इस फैसले के बाद एक वीडियो जारी करते हुए आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बीते 99 सालों से सतत राष्ट्र के पुनर्निर्माण और समाज की सेवा में संलग्न है. आंबेकर ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता-अखंडता और प्राकृतिक आपदा के समय में समाज को साथ लेकर संघ के योगदान के चलते समय-समय पर देश के विभिन्न प्रकार के नेतृत्व ने संघ की भूमिका की प्रशंसा भी की है।
उन्होंने कहा कि अपने राजनीतिक स्वार्थों के चलते तत्कालीन सरकार की तरफ से शासकीय कर्मचारियों को संघ जैसे रचनात्मक संगठन की गतिविधियों में भाग लेने के लिए निराधार ही प्रतिबंधित किया गया था. शासन का वर्तमान फैसला समुचित है और भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को पुष्ट करने वाला है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों के भाग लेने पर 58 साल पहले तत्कालीन सरकार ने प्रतिबंध लगाया था. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से प्रतिबंध हटाने की नोटिफिकेशन के बाद, अब सरकारी कर्मी RSS की गतिविधियों में शामिल हो सकेंगे. इस आदेश में कहा गया है, “उपर्युक्त निर्देशों की समीक्षा की गई है और यह निर्णय लिया गया है कि 30 नवंबर 1966, 25 जुलाई 1970 और 28 अक्टूबर 1980 के संबंधित कार्यालय ज्ञापनों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उल्लेख हटा दिया जाए.”
केंद्र सरकार की हालियां फैसले पर कांग्रेस ने भी सवाल खड़े किए हैं. राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने भी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की पोस्ट को अपने एक अकाउंट पर शेयर किया. जूली ने विधानसभा के बाहर मीडिया से बातचीत में कहा कि संघ के कार्यक्रम में सरकारी कर्मचारियों की भागीदारी को दूर रखा जाए, सरकारी कर्मचारियों का राजनीतिककरण करना गलत है।
वहीं, कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने 1966 के आदेश की फोटो भी शेयर की और नाराजगी जताई. उन्होंने कहा कि यह समस्या महात्मा गांधी की हत्या के बाद से ही शुरू हुई थी और 1975 और 1992 में फिर से बैन लगाया गया था. कई सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस से जुड़े होने पर नौकरी से निकाला भी गया था. उन्होंने कहा कि यह निर्णय भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को पुष्ट करने वाला है।