
मोहाली स्थित सीबीआई कोर्ट ने 1993 में हुए एक फर्जी एनकाउंटर मामले में पंजाब के तरनतारन जिले के दो पूर्व पुलिस अधिकारियों को दोषी ठहराया है। दोषियों में पुलिस स्टेशन पट्टी के तत्कालीन एसएचओ सीता राम (80) और तत्कालीन कांस्टेबल राज पाल (57) शामिल हैं। अदालत 6 मार्च को दोनों की सजा पर फैसला सुनाएगी।





क्या है मामला?
30 जनवरी 1993 को पुलिस ने गुरदेव सिंह उर्फ देबा को उसके घर से और 5 फरवरी को सुखवंत सिंह को हिरासत में लिया था। 6 फरवरी को थाना पट्टी के भागूपुर इलाके में इन दोनों को मुठभेड़ में मारा गया दिखाया गया। पुलिस ने दावा किया था कि ये 300 आपराधिक मामलों में शामिल थे, लेकिन सीबीआई जांच में यह दावा झूठा पाया गया।
20 साल तक स्टे और गवाहों की मौत से प्रभावित हुआ केस
सीबीआई ने 2000 में 11 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था, लेकिन पंजाब अशांत क्षेत्र अधिनियम 1983 के तहत कानूनी अड़चनों की वजह से केस पर 20 साल तक स्टे लगा रहा। मुकदमे के दौरान 23 गवाहों की मृत्यु हो गई, जिससे कई आरोपी बरी हो गए।
सीबीआई जांच में बड़े खुलासे
- पुलिस ने मुठभेड़ की झूठी कहानी गढ़ी और एफआईआर दर्ज कर दी।
- मृतकों के शव लावारिस घोषित कर अंतिम संस्कार कर दिया गया।
- न्यायिक फाइल से महत्वपूर्ण सबूत गायब कर दिए गए, जिन्हें कोर्ट के आदेश पर दोबारा बनाया गया।
- 30 साल बाद, 2023 में पहली बार अभियोजन पक्ष के गवाह का बयान दर्ज किया गया।
अब आगे क्या?
6 मार्च को कोर्ट दोषियों को सजा सुनाएगी। इस केस का फैसला पंजाब में फर्जी एनकाउंटर पीड़ितों के लिए इंसाफ की उम्मीद जगाने वाला माना जा रहा है।