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उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नैनीताल जेल में फैली अव्यवस्थाओं और जेल के जर्जर भवन का स्वतः संज्ञान लेकर जनहित याचिका के रूप में सुनवाई की. मामले की सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने राज्य सरकार से पूछा है कि क्या राजस्थान की तरह नैनीताल जिले में भी ओपन जेल बनाई जा सकती है, जहां कैदियों का स्किल डेवलपमेंट के साथ-साथ अन्य सुविधाएं उपलब्ध हो सकती हों? दो माह के भीतर अपनी राय कोर्ट में प्रस्तुत करें.

 

साथ में कोर्ट ने न्यायमित्र से कहा कि वे राजस्थान की ओपन जेलों का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट दें और जेलों के सुधारीकरण हेतु सुझाव प्रस्तुत करें. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि सरकार ने पूर्व के आदेश का अनुपालन करते हुए नैनीताल जेल से कैदी सितारगंज ओपन जेल में शिफ्ट कर दिए हैं.

 

यहीं नहीं कोर्ट के आदेश पर सरकार ने उन कैदियों को भी रिहा कर दिया, जिनकी जमानत होने के बाद भी मुचलके भरने के लिए कोई नहीं था. उन्हें निजी बेल बांड पर रिहा कर दिया. ऐसे कैदियों की संख्या 27 थी, जिसमें से 25 रिहा हो चुके हैं. बाकि दो गंभीर आरोप वाले हैं, उन्हें रिहा नहीं किया गया.

 

पूर्व में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने नैनीताल जेल के निरीक्षण के दौरान पाया कि साल 1906 में बना जेल का भवन काफी पुराना हो चुका है, जो जर्जर हालत में पहुंच चुका है. इसके अलावा जेल में क्षमता से अधिक कैदियों को रखा गया है. जेल में बंद कैदियों के लिए मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. जेल भवन मुख्य सड़क से काफी दूरी पर स्थित है. कैदियों के बीमार पड़ने पर उन्हें समय पर हॉस्पिटल पहुंचाने में भी दिक्कतें होती हैं. निरीक्षण के दौरान पाया गया कि नैनीताल जेल भवन भूगर्भीय दृष्टि से भी संवेदनशील है, जो कभी भी भूस्खलन की जद में आ सकता है. जिसका उच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लिया है.

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