16 जून 2013… ये वो तारीख है जो उत्तराखंड के इतिहास में कभी न भूलने वाला काला दिन बन चुकी है। केदारनाथ में आई भीषण त्रासदी को आज 12 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन इस आपदा के जख्म आज भी हरे हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस आपदा में बरामद 735 शवों का डीएनए सैंपल लिया गया था। वहीं देशभर से करीब 6 हजार लोगों ने अपनों की तलाश में अपने डीएनए सैंपल सरकार को दिए। मगर चौंकाने वाली बात ये है कि आज तक सिर्फ 33 मामलों में ही डीएनए मिलान हो पाया है।
कई शव ऐसे हैं जिनका आज तक कोई वारिस नहीं आया। माना जा रहा है कि शायद उस भयावह रात में पूरे परिवार खत्म हो गए। ना कोई लौटने वाला बचा, ना कोई पहचान करने वाला।
अमित सिन्हा, निदेशक, फॉरेंसिक उत्तराखंड:
“उस समय जो शव मिलते थे, उनका कोई अंग, जैसे उंगली या दांत, प्रिज़र्व कर लिया जाता था। करीब 750 सैंपल उठाए गए थे। परिजनों ने सैकड़ों की संख्या में डीएनए सैंपल दिए थे। अब तक 30 से 32 मामलों में ही मैचिंग हो पाई है।”
12 साल बाद भी केदारनाथ धाम में आज भी सैकड़ों गुमनाम आत्माएं मोक्ष की प्रतीक्षा में हैं। हर साल जब 16 जून की तारीख आती है, तो यही सवाल उठता है – वो कौन लोग थे, जिनका कोई नहीं आया?
अब हालत सामान्य हो चुके हैं। लाखों श्रद्धालु हर साल केदारनाथ पहुंच रहे हैं, लेकिन जून 2013 में जो आए थे, उनमें से कई हमेशा के लिए इसी पवित्र धाम में रह गए।
विज्ञान और भावनाओं के इस सफर में आज भी सैकड़ों शवों की पहचान अधूरी है। केदारनाथ की वादियां आज भी उन गुमनाम लोगों की याद में चुप हैं… जो लौटकर कभी अपने घर नहीं जा सके।