अमेरिका की एक संघीय व्यापार अदालत ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को झटका देते हुए उन्हें आयातित वस्तुओं पर नए टैरिफ लगाने से रोक दिया है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार न्यायालय के इस फैसले में कहा गया है कि ट्रंप ने टैरिफ लागू करने में अपनी कानूनी शक्तियों का उल्लंघन किया है।
यह मामला 2 अप्रैल को घोषित किए गए टैरिफ से जुड़ा है, जिसमें ज्यादातर आयातों पर 10 फीसदी टैक्स लगाया गया था। चीन और यूरोपीय संघ से आने वाले सामानों पर इससे भी अधिक शुल्क तय किया गया था। ट्रंप ने इस योजना को ‘लिबरेशन डे’ का नाम दिया था। हालांकि, बाद में उन्होंने कुछ देशों के साथ डील करने की कोशिश में कुछ टैरिफ रोक भी दिए थे।
कोर्ट का फैसला क्या कहता है?
न्यूयॉर्क स्थित अंतरराष्ट्रीय व्यापार न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि ट्रंप के पास अपने स्तर पर इस तरह के व्यापक टैरिफ लगाने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्ति अधिनियम 1977 (IEEPA) का इस्तेमाल इस प्रकार टैरिफ तय करने के लिए नहीं किया जा सकता।
न्यायाधीशों ने लिखा कि यदि किसी एक व्यक्ति को यह शक्ति दे दी जाए, तो यह संविधान के तहत विधायी शक्तियों का अनुचित हस्तांतरण होगा। अदालत ने कहा कि ट्रंप द्वारा लागू किए गए टैरिफ, IEEPA के दायरे से बाहर हैं।
ट्रंप प्रशासन का पक्ष
पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने बचाव में कहा था कि अमेरिका का व्यापार घाटा और नशीली दवाओं की तस्करी राष्ट्रीय आपात स्थितियाँ हैं, जिससे उन्हें टैरिफ लगाने का अधिकार मिलता है। उन्होंने तर्क दिया कि टैरिफ से अमेरिकी नौकरियाँ वापस आएंगी और व्यापार घाटा कम होगा।
व्हाइट हाउस के प्रवक्ता कुश देसाई ने भी कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अमेरिका का व्यापार घाटा एक वास्तविक आपात स्थिति है, जिसने देश के औद्योगिक ढांचे को कमजोर किया है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रशासन अमेरिकी महानता को बहाल करने के लिए हर कार्यकारी शक्ति का इस्तेमाल करता रहेगा।
फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है, और विशेषज्ञों की मानें तो ट्रंप की व्यापार नीति पर यह एक बड़ा कानूनी झटका है, खासकर तब जब उनके दूसरे कार्यकाल की शुरुआत ही हुई है।