रूद्रपुर। विश्व की सर्वोच्च धार्मिक संस्था राधास्वामी सत्संग ब्यास के मुखिया बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लों जी अपने उत्तराधिकारी हजूर जसमीत सिंह गिल जी के साथ रविवार को किच्छा रोड स्थित राधास्वामी सत्संग घर में पहुंचे। सुबह 9:15 बजे वे सत्संग पंडाल में बने मंच पर विराजमान हुए और उपस्थित श्रद्धालुओं पर कृपा दृष्टि डाली। पंडाल में लगभग 1.5 लाख श्रद्धालु सत्संग का लाभ लेने पहुंचे थे।
सत्संग में आध्यात्मिक ज्ञान की गंगा
9:30 बजे पाठी द्वारा तीसरी पातशाही का शब्द “हर की पूजा दुर्लभ है संतो कहना कछु ना जाई” पढ़ा गया। बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लों जी ने इस शब्द का अर्थ समझाते हुए बताया कि सभी संत-महात्माओं ने समय-समय पर भक्ति के अलग-अलग मार्ग बताए, लेकिन कलयुग में भक्ति का सबसे सरल मार्ग “नाम सुमिरन” बताया गया है।
उन्होंने कहा कि ईश्वर, अल्लाह, वाहेगुरु या गॉड – ये सब एक ही परमात्मा के नाम हैं। परमात्मा का स्वरूप अनामी (बिना नाम का) है, लेकिन हमने उसे अपनी सुविधानुसार अलग-अलग नाम दे दिए हैं।
मुक्ति का मार्ग केवल भक्ति से
बाबा जी ने बताया कि जीवन का उद्देश्य भक्ति के माध्यम से मोक्ष प्राप्त कर जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होना है। उन्होंने कहा कि बाहर भटकने से कुछ नहीं मिलेगा – तीर्थयात्रा, माथा टेकना, नाक रगड़ना या पवित्र सरोवरों में स्नान करने से मोक्ष नहीं मिलता।
मोक्ष प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि सतगुरु से नाम दीक्षा लेकर, उनके बताए मार्ग पर चलें, जाप करें, अपने अंतर में प्रकाश के दर्शन करें और शब्द धुन को सुनें। ऐसा करने से ही आत्मा अपने निज धाम – सतलोक-सचखंड में पहुंच सकती है।
बाबा जी ने कहा, “आत्मा के अंदर परमात्मा है और परमात्मा के अंदर आत्मा। ये दोनों एक ही हैं, लेकिन इसकी अनुभूति नाम भक्ति करने से ही होती है।”
मन को वश में करना आवश्यक
उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति पूजा तो करता है, लेकिन अधिकतर मन के अधीन होकर करता है। मन हमें भटकाता है और परमात्मा से मिलने नहीं देता। इसलिए, मन को वश में करना आवश्यक है।
बाबा जी ने कर्मों के महत्व पर भी प्रकाश डालते हुए कहा कि कर्मों के फल से कोई नहीं बच सकता। उन्होंने कहा कि **ना भोगी बनना है, ना त्यागी बनना है। बल्कि अपनी सांसारिक व पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए भक्ति करनी चाहिए, जिससे मोक्ष प्राप्त कर जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिले।