
देहरादून: उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू हो चुकी है, लेकिन इसके विभिन्न प्रावधानों को नैनीताल हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। खासतौर पर ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ से जुड़े नियमों पर आपत्ति जताई गई है। इस संबंध में दाखिल जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई 12 फरवरी को मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ में होने की संभावना है।





लिव-इन रिलेशनशिप के प्रावधानों को चुनौती
भीमताल निवासी और डीएसबी नैनीताल के पूर्व छात्र नेता सुरेश सिंह नेगी ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर यूसीसी के कई प्रावधानों को चुनौती दी है। याचिका में मुख्य रूप से लिव-इन रिलेशनशिप में पंजीकरण की अनिवार्यता और अन्य धार्मिक समुदायों की वैवाहिक पद्धति की अनदेखी का मुद्दा उठाया गया है।
इसके अलावा देहरादून निवासी एलमसुद्दीन सिद्दीकी ने भी रिट याचिका दायर कर अल्पसंख्यकों के रीति-रिवाजों की अनदेखी का आरोप लगाया है। मुस्लिम सेवा संगठन पहले ही यूसीसी का विरोध कर चुका है और इस मुद्दे पर कानूनी लड़ाई लड़ने की बात कही थी।
यूसीसी के तहत लिव-इन रिलेशनशिप के नए नियम
27 जनवरी 2025 से प्रभावी उत्तराखंड यूसीसी के तहत लिव-इन रिलेशनशिप का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया है। यदि कोई जोड़ा बिना रजिस्ट्रेशन के लिव-इन में रहता है, तो उसे 6 महीने की जेल या 25,000 रुपये जुर्माने की सजा हो सकती है। गंभीर मामलों में दोनों ही सजाओं का प्रावधान है।
- पहले से लिव-इन में रह रहे जोड़ों को यूसीसी लागू होने के एक महीने के भीतर रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य।
- नए लिव-इन कपल्स को रिश्ते में आने के एक महीने के भीतर पंजीकरण कराना होगा।
- पंजीकरण ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से संभव।
- जनजातीय समुदाय के जोड़ों को इस नियम से छूट दी गई है।
क्या होगा आगे?
12 फरवरी को हाईकोर्ट में सुनवाई संभावित है, जहां यूसीसी के लिव-इन प्रावधानों की वैधता पर बहस होगी। यदि अदालत में इन नियमों को लेकर सवाल उठते हैं, तो यूसीसी में संशोधन या बदलाव की संभावना बन सकती है।