भारत की आजादी के सपने के लिए कई भारतीय वीर सुपूतों ने अपनी जान दे दी. बेशक स्वतंत्रता सेनानियों के आजादी पाने के तरीके अलग-अलग थे. लेकिन सबका मकसद एक ही था- संपूर्ण आजादी. ऐसे ही भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय थे.लाला लाजपत राय की मौत की वजह 1927 में साइमन कमीशन का विरोध करने पर उन्हें पड़ी लाठियों की चोट रही।
उनकी मौत से देश में आक्रोश की लहर दौड़ पड़ी. इसी कड़ी में आज ही के दिन यानी 17 दिसंबर को 1927 में क्रांतिकारी भगत सिंह और राजगुरु ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया।
किसने चलाई थी लाजपत राय पर लाठी?
1927 में साइमन कमीशन भारत आया. इसका गठन भारत में संविधान सुधारों के अध्ययन के लिए किया गया था. कांग्रेस ने उसका यह कहकर विरोध किया कि उसका एक भी सदस्य भारतीय नहीं है. लाजपत राय लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध का नेतृत्व कर रहे थे।
प्रशासन विरोध से पहले ही वाकिफ था. वहां भीड़ इकट्ठा ना हो पाए इसलिए वहां धारा 144 लगा दी गई. लेकिन लाहौर के रेलवे स्टेशन पर साइमन का लोगों ने काले झंडे दिखा कर और ‘साइमन गो बैक’ के नारे लगाकर विरोध किया. पुलिस को भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज करने का आदेश मिला।
लाजपत राय की जीवनी ‘लाजपत राय लाइफ़ एंड वर्क’ में फ़िरोज़ चंद लिखते हैं, “भीड़ पर लाठी चलाने वालों में खुद सबसे आगे था वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट. उनका साथ दे रहा था उनका असिस्टेंट जॉन साउंडर्स.”
पुलिस ने जानबूझकर लाजपत राय को निशाना बनाकर लाठियां बरसाईं. लाठीचार्ज थमने पर बुरी तरह से घायल लाला लाजपत राय ने कहा, “हमारे ऊपर किया गया हर वार ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में ठोकी गई एक कील साबित होगा.” आगे चलकर यह वाक्य सच साबित हुआ. डाक्टरों की जांच में बाद में सामने आया कि लाजपत राय के सीने के बाएं हिस्से में दो जगहों पर चोट के गहरे निशान हैं।
बुरी तरह घायल होने पर भी लाला लाजपत ने काम करना बंद नहीं किया. वो कांग्रेस सम्मेलन में भाग लेने भी गए. लेकिन उस दौरान उनकी तकलीफ बढ़ गई और उन्हें दिल्ली से वापस लाहौर आना पड़ा. उन्होंने अपने अख़बार में लिखा, “शुरू में लगा कि लाहौर में मुझे लाठियों से मिली चोट इतनी गंभीर नहीं थी लेकिन इसने मेरे पूरे शरीर को गहरा सदमा पहुंचाया था.”
चोट लगने के 2 हफ्ते बाद 17 नवंबर 1928 को दिल का दौरा पड़ने के कारण लाला लाजपत राय का निधन हो गया. डॉक्टरों का मानना था कि लाला लाय की मौत का कारण 30 अक्टूबर को उनकी देह पर पड़ी पुलिस की लाठियां थीं. उनकी मौत से देश में आक्रोश की भावना फैल रही थी. इस बीच उन पर लाठी चलाने वालों में से एक जेम्स स्कॉट को चुपचाप लाहौर से बाहर तैनात कर दिया गया।
भगत सिंह और राजगुरु ने लिया बदला
पंजाब केसरी के नाम से जाने जाने वाले लाला लाजपत राय कई युवाओं की प्रेरणा थे. उनकी मौत के बाद क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू ने लाजपत राय के कातिल जेम्स स्कॉट से बदला लेने का निर्णय किया. उन्होंने अपने प्लान को लाजपत राय की मौत के एक महीने बाद 17 दिसंबर को अंजाम दिया।
उस शाम भगत सिंह और उनके साथी पुलिस ऑफिस से जेम्स स्कॉट के निकलने का इंतजार कर रहे थे. उनके साथी ने अनजाने में साउंडर्स को स्कॉट समझ कर इशारा कर दिया. राजगुरू ने इशारा पाते ही साउंडर्स. पर गोली चला दी. तभी भगत सिंह भी करीब जाकर 3 और गोलियां साउंडर्सके अंदर उतार देते हैं. घटना के बाद जगह-जगह पोस्टर्स लगा दिए गए कि लाजपत राय की मौत का बदला पूरा हो गया है।
इसके बाद 8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेन्ट्रल असेंबली में बम फेंके. पूरे भवन में मची अफरातफरी का फायदा उठाकर वो भाग सकते थे. लेकिन बम फेंकने वाले दोनों क्रांतिकारी इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए वहीं खड़े रहें. उन्होंने कुछ पर्चे भी सदन में फेंके जिनमें लिखा था- बहरे कानों को सुनाने के लिए धमाकों की जरूरत पड़ती है।
बाद में दोनों को जेल में डाल दिया गया. 10 जुलई 1929 को भगत सिंह को अंग्रेज साउंडर्सकी हत्या के सिलसिले में लाहौर लाया गया. इसके लगभग 2 साल बाद 23 मार्च 1931 को कोर्ट के फैसले पर भगत सिंह को उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा हुई।